महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम

Joharcg.com स्वच्छता के क्षेत्र में अपने प्रबंधकीय कौशल का लोहा मनवा चुकी श्रीमती करीना खातून अब मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में अपने कार्यों से नई लकीर खींच रही है। मनरेगा में मेट बनने के बाद कार्यस्थल में अपने दायित्वों को कुशलता से अंजाम देने के साथ ही वह श्रमिकों को मनरेगा कार्यों से जोड़ने, मोबाइल एप्प में उनकी उपस्थिति, रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन के कारण मजदूरी भुगतान में आने वाली समस्या के निराकरण और जॉब-कार्ड अद्यतन जैसे कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभा रही है। खाली समय में मिर्ची की खेती कर परिवार के लिए अतिरिक्त आय भी जुटा रही है।

मनरेगा मेट के तौर पर अपने अनुभव साझा करते हुए करीना कहती है कि मजदूरी भुगतान में ट्रान्जेक्शन रिजेक्शन की समस्याओं का निराकरण बड़ी चुनौती है। श्रमिकों को बैंक से जारी पास-बुक में अंकित नाम व खाता क्रमांक तथा नरेगा सॉफ्टवेयर (नरेगा-सॉफ्ट) में दर्ज श्रमिकों के नाम व खाता क्रमांक में अंतर, अमान्य खाता, बंद या स्थानांतरित खाता, निष्क्रिय आधार, केवाईसी अपडेट नहीं होने, खाता मौजूद नहीं होने, आधार-कॉर्ड की बैंक खाते से सीडिंग नहीं होने, बैंकों के मर्ज होने की स्थिति में अमान्य बैंक पहचानकर्ता, आई.एफ.एस. कोड के गलत होने तथा दावारहित खाता होने जैसे कारणों के चलते मजदूरी भुगतान के लिए जारी फंड ट्रांसफर आर्डर (FTO) रिजेक्ट हो जाते हैं। इससे श्रमिकों को लगता है कि उसकी मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है। करीना बताती है वर्ष 2019 में 250 ट्रांजेक्शन रिजेक्ट हुए थे, जिन्हें जनपद पंचायत से मार्गदर्शन लेकर आवश्यक सुधारकर दूर किया गया। आज की स्थिति में ग्राम पंचायत में रिजेक्टेड ट्रांजेक्शन नहीं के बराबर है। मनरेगा मजदूरों के बैंक पास-बुक में उनकी मजदूरी दिखाई देती है। इसका सीधा प्रभाव कार्यस्थल पर दिख रहा है। मनरेगा के अंतर्गत खुले कामों में श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है। मनरेगा में मेट का काम शुरू करने के बाद से करीना की जिंदगी में भी बदलाव आया है। उसे बतौर मेट पारिश्रमिक के रूप में करीब 32 हजार रूपए प्राप्त हो चुका है। इस राशि से उसने अपने बच्चों के ट्यूशन और कॉलेज की फीस भरी है। बची हुई रकम से उसने अपने दो एकड़ खेत में मिर्ची लगाया है। इसने परिवार के लिए अतिरिक्त आय का जरिया खोला है।