कोरबा।  छत्तीसगढ़ के कोरबा जिलान्तर्गत ग्राम कनकी में मानसून का संदेश लेकर खूबसूरत प्रवासी पक्षी दक्षिण पूर्व एशिया से मीलों का सफर तयकर पहुंच चुके है।  प्रवासी पक्षियों के पहुंचने के बाद से ही स्थानीय लोगों और किसानों के चेहरे भी खिल गए हैं।  दरअसल इनका आगमन एक तरह से मानसून के शुरू होने का संकेत होता है, जिससे किसान ये समझ जाते हैं, कि अब उनके अच्छे दिनों की शुरुआत होने वाली है। 


कोरबा के जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर स्थित कनकी धाम प्राचीन शिव मंदिर के साथ ही प्रवासी पक्षियों के लिए भी मशहूर है. यहां ओपन बिल्ड् स्टॉर्क पक्षियों को मानसून के साथ ही खुशहाली का प्रतीक भी माना जाता है. कनकी में हजारों की तादाद में पक्षी आते हैं फिलहाल लगभग 500 से ज्यादा प्रवासी पक्षी पहुंच चुके है, मानसून के शुरू होने तक इन पक्षियों के आने का सिलसिला जारी रहेगा।  ये प्रवासी पक्षी मानसून के शुरू होने से लेकर खत्म होने तक कनकी में अपने प्रजनन काल का पूरा समय बिताते हैं जब इन पक्षियों के अंडों से बच्चे निकलकर उड़ने लायक हो जाते हैं तब वह इन बच्चों को साथ लेकर वापस लौट जाते है। गांव के लोगों का भी मानना है कि ये पक्षी सुख, समृद्धि और मानसून का संदेश लेकर आते हैं इनकी तुलना ग्रामीण देवदूत से भी करते हैं। 


प्रवासी पक्षियों को इसलिए भी किसानों का मित्र कहा जाता है क्योंकि यह बड़ी तादात में गंदगी व आसपास के क्षेत्रों में फसलों में लगने वाले कीड़ों को अपना आहार बना लेते हैं पक्षियों की तादाद इतनी ज्यादा है कि वह आसपास के खेतों से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों को पूरी तरह से सफाचट कर जाते है। 


प्रवासी पक्षियों का कनकी में आगमन कोई नई बात नहीं है इनके पीछे ऐसी मान्यता है कि यह पिछले 100 से भी ज्यादा सालों से कनकी में प्रजनन के लिए आते हैं वैसे तो कोरबा जिला प्रदूषण के लिए जाना जाता है लेकिन हंसदेव नदी के तट पर बसे गांव कनकी की आबोहवा कुछ ऐसी है जिस से आकर्षित होकर दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों से पक्षी यहां हर वर्ष प्रवास पर आते हैं। 
जानकारों की मानें तो एशियन ओपन बिल्ड स्टॉर्क पक्षी भारत उपमहाद्वीप के साथ ही दक्षिण पूर्व एशिया के चीन, ऑस्ट्रेलिया, कंबोडिया, थाईलैंड, वियतनाम, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्यानमार, मलेशिया, फिलीपींस व सिंगापुर जैसे देशों में पाए जाते हैं. भारत में इन्हें घोंघिल कहा जाता है, यहां इनकी 20 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। 


कनकी में पक्षियों का प्रजनन काल जून-जुलाई से लेकर सितंबर और नवंबर तक माना जाता है, वहीं श्रीलंका और दक्षिण भारत में नवंबर से मार्च तक है।  कनकी में अपने प्रवास के दौरान यह इमली, बरगद और पीपल के जिस पेड़ पर घोंसला बनाते है, अगले साल भी वह उसी पेड़ पर आकर फिर से घोंसला बनाते हैं।  और प्रजनन करते है ,ये प्रवासी पक्षी अक्टूबर में वापस लौट जाते है। 

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