Sugarcane farmers will get financial benefit from the commissioning of ethanol plant

रायपुर – एथनॉल ईंधन के रूप प्रयोग किया जाता है। यह रासायनिक रूप से एथिल अल्कोहल ही है, जो सामान्य तौर पर एल्कोहलिक पेयों में पाया जाता है। जैव एथेनॉल, गन्ने के रस जैसे जैविक चीजों से प्राप्त किया जाता है। एथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाकर मोटर वाहनों के ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। एथेनॉल को ब्राजील, अमेरिका तथ यूरोप के कई देशों में बड़े पैमाने में पेट्रोल में मिलाया जाता है। इसे वाहनोें के ईंधन मे 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक मिलाया जाता है।

एथेनॉल पेट्रोल की ज्वलनशीलता बढ़ाता है। एथेनॉल मिलाने पर पेट्रोल की दक्षता बढ़ जाती है। इससे पेट्रोल का दहन इंजन में बेहतर तरीके से होता है तथा निकलने वाला धुआं भी कम प्रदूषण करता है। इसके इस्तेमाल से प्रदूषण कम होता है यानी इसका इस्तेमाल कर पर्यावरण को होने वाला नुकसान भी कम किया जा सकता है।

जैव-इथेनॉल उत्पादन आज के समय की जरूरत है। ऐसे में राज्य में भी जैव-इथेनॉल संयंत्र की स्थापना महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। राज्य में गन्ने की खोई और धान की पर्याप्त उपलब्धता हैै। जैव-इथेनॉल का उत्पादन शुरू करना इसलिए भी एक लाभदायक विकल्प है, क्योंकि केेंद्र सरकार उच्च मूल्य पर जैव ईंधन का आयात कर रही है। जैव-इथेनॉल उत्पादन से न केवल विदेशी धन की बचत होगी, बल्कि कृषि क्षेत्र का भी विकास किया जा सकेगा।

गन्ने और फसल अवशेष से ईंधन उत्पादन न केवल किसानों को अतिरिक्त आमदनी उपलब्ध कराएगा, बल्कि पराली के सुरक्षित निपटान से पर्यावरण को बेहतर करने में मदद मिलेगी। जैवईंधन का इस्तेमाल बढ़ने से किसानों की आय बढ़ेगी और राज्य में रोजगार के नये अवसर पैदा होंगे। राज्य में उत्पादित अतिरिक्त धान से बायो-एथेनॉल उत्पादन की अनुमति के लिए राज्य सरकार द्वारा निरंतर  प्रयास किये जा रहे थे। शासन के इन प्रयासों के फलस्वरू छात्तीसगढ़ में अधिशेष चॉवल से एथेनॉल उत्पादन की दर 54 रूपए 87 पैसे प्रति लीटर निर्धारित की गई है।

राज्य शासन की मांग है कि किसानो से खरीदे अतिरिक्त धान को सीधे तौर पर एथेनॉल संयत्रोें को ईधन उत्पादन हेतु विक्रय की अनुमति प्रदान की जाये। इससे राज्य के किसानों को आर्थिक लाभ के बेहतर अवसर प्राप्त होंगे।