खारून नदी, छत्तीसगढ़
Kharun River
Kharun River खारुन नदी शिवनाथ नदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह शिवनाथ नदी में मिलकर महानदी की संपन्न जलराशि में भी अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करती है। दुर्ग जिले के संजारी क्षेत्र से निकलने वाली यह नहीं रायपुर तहसील की सीमा से बहती हुई सोमनाथ के पास शिवनाथ नदी में मिल जाती है। इसी जगह पर यह बेमेनय और बलौदाबाजार तहसील को अलग करती है। बलौदाबाजार के उत्तर में अरपा नदी, जो बिलासपुर जिले से निकलती है, शिवनाथ से आ मिलती है। हावड़ा नागपुर रेल लाइन इस खारुन नदी के ऊपर से गुजरती है। खारुन में एक शान्ति है जो देखने वालों को अपनी ओर खींचती हैं।
खारुन की तलाश- खारुन की तलाश में रायपुर से 80 किमी धमतरी, वहां से 40 किमी गुरुर, यहां से 9 किमी दूर मरकाटोला, फिर जंगलों में 4 किमी दूर पेटेचुआ…. राजधानी के तकरीबन 10 लाख लोगों को सालभर पानी देने वाली खारुन हर साल सूख रही है. इसकी वजह की पड़ताल में भास्कर टीम उद्गम स्थल तक पहुंच गई. पता चला कि उद्गम ही नहीं, वहां से 5 किमी दूर तक नदी गायब हो चुकी है. धारा तो दूर, एक बूंद पानी नहीं है. उद्गम में ऊपरी सतह ही कुछ नम दिखी. इसके अलावा जहां नदी थी, वहां अब या तो खेत हैं या जंगल उग आया.
रायपुर की प्यास बुझाने वाली तथा उद्गम से शिवनाथ में मिलने से पहले तक तकरीबन 200 गांवों की जरूरत पूरी करने वाली खारुन अब सोर्स प्वाइंट पर ही पूरी तरह सूख चुकी है. खारुन में राजधानी के आसपास जो पानी नजर आ रहा है, वह उद्गम की जलधारा नहीं बल्कि वहां से मीलों दूर बड़े-छोटे नालों का है, जो इससे मिलते हैं. भास्कर टीम को पेटेचुआ के 65 साल के हनुमान ने बताया कि दो दशक पहले तक खारुन के उद्गम से फौव्वारे जैसा पानी फूटता था.
यहां से लेकर दो-तीन किमी दूर तक जगह-जगह देवी-देवताओं के मंदिर हैं. इनसे पता चला कि खारुन सिर्फ नदी नहीं, धार्मिक और आध्यात्मिक नजरिए से रायपुर संभाग के बड़े इलाकों से जुड़ी है. इतनी जरूरत और इतनी आस्था के बावजूद खारुन बचाई नहीं जा सकी. हनुमान के मुताबिक अब उद्गम मैदान में पानी नहीं दिखता, केवल सतह ही थोड़ी नम दिखती है बस. लोगों में मान्यता है, अब यह सतह पर नहीं बहती, भीतर बह रही है.
आवाज पर पड़ गया नाम
खारुन का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है. ककालिन के लोगों ने बताया कि दरअसल इसके बहाव से खर…खर सी आवाज आती थी. इसलिए खारुन नाम दे दिया गया.
सोर्स प्वाइंट को गहरा कर बचा सकते हैं:
दर दर गंगे किताब के को-राइटर और देश के जाने माने नदी विशेषज्ञ अभय मिश्र ने कहा कि अगर किसी नदी का उद्गम सूख रहा है तो यह पर्यावरण के लिहाज से बेहद चिंतनीय है. खारुन के उद्गम पर ऊपरी परत नम है, तो कह सकते हैं कि भीतर पानी होगा. वहां गहरीकरण वगैरह करके सोर्स प्वाइंट को फिर जिंदा किया जा सकता है.
उद्गमस्थल सूख जाने के बाद ग्रामीणों ने बना दिए हैं खेत
भास्कर टीम को इस मैदान तक लेकर जाने वाले ग्रामीण हनुमान ने बताया कि मैदान से निकला पानी इससे लगे तालाब को भरता है. वहीं से खारुन निकलती है. उद्गम यानी मैदान तो पूरी तरह सूखा था. तालाब में भी पानी नहीं के बराबर है. लोगों ने बताया कि बारिश में आसपास के जंगलों का सारा पानी इसी तालाब में आता है. इस तालाब से संकरे नाले के रूप में खारुन निकलती है. हनुमान ने बताया कि पिछली दीपावली तक मैदान और तालाब, दोनों से पानी दीपावली तक दिखा था. उसके बाद से यह सूखा ही है.
तालाब से निकला जो संकरा पहाड़ी नाला आगे जाकर खारुन में बदलता है, यह भी बिलकुल सूखा है. एक किमी दूर कंकालिन माता मंदिर के बगल में यह नाला एक कुंड में जाता है. वह कुंड भी सूख चुका. यहीं के गणेश ने बताया कि यहां से करीब 4 किमी दूर दोरदे झरना है. यह खारुन का ही है. टीम इस झरने की तलाश में घने जंगलों से होती हुई करीब 4 किमी दूर खैरडिगी पहुंची. वहां से पहाड़ी रास्ते पर 2 किमी पैदल जलने के बाद खारुन फिर मिली, पूरी तरह सूखी हुई. यहीं खेतों में काम कर रहे कन्हैया पटेल और नारायण सिंह ठाकुर ने बताया कि दोरदे जाना मुश्किल होगा. खारुन के एक और झरने माशूल तक जा सकते हैं. यहां से सूखी नदी में 2 किमी चलते हुए माशूल तक पहुंचे. कन्हैया ने बताया कि करीब 15 फीट ऊंचाई का यह झरना पहले दिसंबर तक बहता था. अब बारिश खत्म होते ही सूख जाता है. जारिह है, यह भी सूखा ही मिला.
खारुन के उद्गम से 5 किमी दूर तक सूखी नदी का ऐसा सफर
खारुन का उद्गम ही नहीं, सैटेलाइट मैप या नक्शों से इसके प्रारंभिक बहाव के इलाके ढूंढना भी मुश्किल है. भास्कर टीम रायपुर से बालोद और गुरूर होती हुई जगदलपुर नेशनल हाईवे पर 9 किमी दूर मरकाटोला पहुंची. यहां से पेटेचुआ के लिए घने जंगल और पहाड़ियों से घिरा वनमार्ग मिला. लोगों ने बताया कि इस रास्ते से करीब 4 किमी दूर कंकालिन माता मंदिर का साइन बोर्ड फारेस्ट चेकपोस्ट मिलेगा. चेकपोस्ट पर वनकर्मी बसंती ने बताया कि इसी रास्ते में कुछ दूर खारुन का उद्गम है. सुबह साढ़े 8 बजे रायपुर से निकली टीम दोपहर 1 बजे पेटेचुआ के उस मैदान तक पहुंच गई, जहां नदी का उद्गम है.
खारुन ऐसी थी…:
गुरूर तहसील में पेटेचुआ की पहाड़ी के छोटे से मैदान से निकली खारुन, वहां से लगे हुए तालाब में भरता था यह पानी, इस तालाब से संकरे पहाड़ी नाले के रूप में एक किमी दूर कंकालिन मंदिर तक, यहीं से नाला बदल जाता था खारुन नदी में.उद्गम मैदान, लगा हुआ तालाब, पहाड़ी नाला, मंदिर से लगकर पांच किमी दूर तक नदी …सब कुछ पूरी तरह सूखा, मिट गया खारुन नदी का नामोनिशान
सूखना शोध का विषय
स्पेशलिस्ट प्रोफेसर एमएल नायक ने बताया कि खारुन पर जो रिसर्च हुए, उनके आधार पर कह सकते हैं कि शुरुआत में यह बरसाती नाला थी, जो आगे चलकर नदी में बदल गई. अब यह लगभग सूख सी गई है. अगर खारुन का उद्गम सूख गया है, तो यह शोध का विषय है.
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