Bastar will now also be recognized as a coffee and turmeric production area
Bastar will now also be recognized as a coffee and turmeric production area

रायपुर – प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण बस्तर अंचल पर्यटन के साथ-साथ अब कॉफी और हल्दी उत्पादन के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है। जिले की पर्यावरण अनुकूलता से ही दरभा व डिलमिली इलाके में कॉफी और बास्तानार क्षेत्र में हल्दी उत्पादन को राज्य शासन द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। इन उत्पादों का नाम बस्तर कॉफी व बस्तर हल्दी दिया गया है। जो जल्द ही बाजार में उपलब्ध होगी। शासन का प्रयास है कि जिले के किसानों को धान की खेती के साथ-साथ कॉफी और हल्दी की खेती से भी जोड़ कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त किया जा सके।

मुख्यमंत्री ने राज्य शासन के अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि बस्तर कॉफी और बस्तर हल्दी का बेहतर मार्केटिंग किया जाए। बस्तर का मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में जिले के दरभा के पास कोलेंग मार्ग पर वर्ष 2017 में लगभग 20 एकड़ जमीन पर कॉफी का प्रायोगिक तौर पर कॉफी का प्लांटेशन किया गया था। कृषि विश्वविद्यालय के हार्टिकल्चर विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में कॉफी उत्पादन को बढ़ावा दिया गया। इस पूरे प्रोजेक्ट को देखने वाले कृषि विश्वविद्यालय कुम्हरावण्ड के हार्टिकल्चर के प्रोफेसर और अनुसंधान अधिकारी डॉ. के.पी. सिंह ने बताया कि बस्तर में दो प्रजातियों अरेबिका और रूबस्टा काफी के पौधे लगाए गए हैं। बस्तर की कॉफी की गुणवत्ता ओड़िसा और आंध्रप्रदेश के अरकू वैली में उत्पादित किए जा रहे कॉफी के समान है। उन्होंने कहा कि अरेबिका प्रजाति के पौधों से कॉफी के बीजों का उत्पादन प्रारंभ हो गया है, जबकि रूबस्टा से अगले वर्ष से उत्पादन प्रारंभ हो जाएगा। उन्होंने बताया कि अरेबिका प्रजाति के पौधों से प्राप्त बीज का ओडिसा के कोरापुट में प्रोसेसिंग कराई गई है। डॉ. सिंह ने बताया कि दो प्रकार से कॉफी का उत्पादन की बिक्री की जाएगी। एक फिल्टर कॉफी होगी, जो स्वाद में बेहतर है, दूसरी ग्रीन कॉफी होगी।

हार्टिकल्चर कॉलेज के डीन डॉ. एचसी नंदा ने बताया कि कॉफी का एक पौधा चार से पांच साल में पूरी तरह बढ़ जाता है। एक बार पौधा लग जाने के बाद यह 50 से 60 वर्षों तक बीज देता है। एक एकड़ में लगभग ढाई से तीन क्विंटल कॉफी के बीज का उत्पादन होता है। उन्होंने बताया कि यहां काफी की खेती की अच्छी संभावनाएं है। इसे व्यावसायिक स्वरूप देने के लिए स्थानीय किसानों को भी जोड़ा जा रहा है। किसान कॉफी की खेती से हर साल 50 हजार से 80 हजार प्रति एकड़ आमदनी कमा सकते हैं। इसके साथ-साथ अंतरवर्ती फसलों दलहन-तिलहन को भी बढ़ावा दिया जाएगा। इन फसलों को लेने का मुख्य उद्देश्य कम उपजाऊ जमीन पर, कम खाद-पानी में बहुत अच्छे से उगाई जा सकती है। कॉफी उत्पादन से पर्यावरण में हरा-भरा वातावरण के साथ-साथ ग्रामीणों के आय का साधन भी उपलब्ध होगा। बस्तर के विकासखण्ड बास्तानार इलाके में उत्पादित किए जाने वाले हल्दी में पाए जाने वाला कैंसर रोधी तत्व करक्यूमन की मात्रा अधिक पाई जाती है। बस्तर हल्दी के नाम से यह उत्पाद जल्द ही बाजारों में बिक्री हेतु उपलब्ध होगी।