महिलाओं ने कमाया 18 लाख कोरोना लॉकडाउन में

रायपुर – कोरोना और लॉकडॉउन की इस घड़ी में जब पूरा शहर दहलीज के भीतर था, ऐसे वक्त में रायपुर नगर निगम से जुड़ी स्व सहायता समूहों की सैकड़ो महिलाओं ने अपनी कड़ी मेहनत,लगन व मानवीय सोच की मिसाल पेश करते हुए कपड़े के मॉस्क निर्माण कर महिला स्वावलंबन की एक नई तस्वीर पेश कर दी। महापौर श्री एजाज ढेबर की पहल व रायपुर नगर निगम कमिश्नर श्री सौरभ कुमार की दूरगामी सोच को जमीनी धरातल पर उतारते हुए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन ने पखवाड़े भर में न सिर्फ़ लगभग दो लाख मॉस्क तैयार किया, बल्कि नगर निगम द्वारा इस सिलाई के एवज में इन महिला समूहों को 18 लाख रुपये की आय दिलाकर एक आर्थिक मॉडल की तरह प्रस्तुत भी किया है।

कमिश्नर श्री सौरभ कुमार के मुताबिक कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए यह जरूरी था कि हर जरूरतमंद तक मॉस्क पहुंचे।शहर में मॉस्क की कमी ना हो, यह सुनिश्चित करने के लिए हेल्थ ऑफिसर श्री ए के हलदार एवं शहरी आजीविका मिशन की सिटी मिशन मैनेजर सुषमा मिश्रा को जिम्मेदारी देते हुए महिला समूहों को चिन्हित करने कहा गया। रायपुर नगर निगम व शहरी आजीविका मिशन ने मिलकर 24 समूहों की लगभग 100 महिलाओं को मॉस्क बनाने का जिम्मा सौंपा। महिलाओं को इस काम के लिए कपड़े भी नगर निगम ने खादी ग्राम उद्योग से क्रय कर उपलब्ध कराया । स्व सहायता समूह की महिलाओं ने दिन-रात कड़ी मेहनत कर अपने लगन व बड़ी सोच से लगभग पखवाड़े भर में दो लाख मॉस्क तैयार कर आर्थिक स्वावलंबन की अभिनव मिसाल पेश कर दी।

स्वास्थ्य अधिकारी ए के हलदार के अनुसार समूहों में इस काम मे लगी इन महिलाओं के प्रयासों से रायपुर में मॉस्क की बिल्कुल भी कमी नहीं हुई। कपड़े से बने मॉस्क की गुणवत्ता व सहज उपलब्धता की वजह से इस मॉस्क की मांग भी अत्यधिक है। सिटी मिशन मैनेजर सुषमा मिश्रा इस संबंध में बताती हैं कि महिलाएं जब इस काम में जुटी तो पूरा ध्यान इस बात पर था कि अपने शहर को कोरोना के संक्रमण से बचाने कड़ी मेहनत करेंगी, कमिश्नर श्री सौरभ कुमार के निर्देश से मॉस्क बनाने का काम महिला समूहों को दिया गया। प्रति मास्क इन समूहों को 10 रुपये देने के निर्णय से इन महिलाओं का उत्साह बढ़ा और उनमें आर्थिक स्वावलंबन की भावना जागृत हुई ।

एक छोटी शुरुआत से मास्क बनाने का यह काम महिला सशक्तिकरण का सर्वश्रेष्ठ फाइनेंशियल मॉडल के तौर पर ऐसे समय में सामने आया , जब लॉक डाउन से रोजगार व आय के सभी स्रोतों के दरवाजे बंद थे। सुषमा बताती है कि जय मां संतोषी ग्रुप की महिला उमा साहू ने पड़ोसी से मशीन उधार लेकर मॉस्क सिलाई में जुट कर मेहनत की। अब उमा खुश है कि उसने मानव सेवा के लिए जो मेहनत की है उससे मिले पारिश्रमिक से अब खुद की मशीन खरीदेंगी और स्वावलंबी होकर अपने परिवार को आर्थिक मजबूती देने में सहयोग प्रदान करेंगी। इसी तरह 24 महिला समूहों ने पखवाड़े भर में लगभग 18 लाख रुपये की आय अर्जित कर अब अगले मिशन के लिए उत्साहित हैं।