Chhattisgarh ke prachin yantra prarmpara

Chhattisgarh ke prachin yantra prarmpara छत्तीसगढ़ की परंपराए अब धूमिल होती जा रही है अब विभिन्न औजारों के जगह कई मशीनों ने अपनी जगह बना ली है और हमारी परंपराए विलुप्त होकर मात्र त्योहारों तक ही सीमित हो जाएगी ऐसा आभास होता है। इन्ही सब औजारों को सम्मान देने के स्वरूप छत्तीसगढ़ मे कई त्योहारों को धूम धाम से मनाया जाता है । जिसमे पोला पर्व, हरियाली आदि है।

ढेंकी : छत्तीसगढ़ के कुछ ग्रामीण जगहों पर ढेंकी का उपयोग किया जाता था।  यह अब लुप्त प्राय हो चुका है यह एक प्राचीन परम्परागत तरीका हैं जिसमें धान से चांवल को अलग किया जाता है।  ढेंकी से निकला हुआ चांवल पोषक तत्वों से भरपूर होता है जो  मशीन से निकले हुए  चांवल में कम हो जाता है।  ढेंकी से निकला हुआ चांवल कुपोषित बच्चों के लिए बहुत लाभकारी होता है.
ढेंकी मुख्यतः लकड़ी और थोड़े लोहे से बनी होती है ,जब भार धान पर गिरता है तब चांवल और भूसा एक दूसरे से अलग हो जाते है।

जांता : ये पत्थर का एक ऐसा औज़ार है जिससे दाल दला जाता है, आंटा पिसा जाता है

बाहना : यह एक बड़े से पत्थर मे एक गड्ढा रहता है जिसमे अनाजों को डाल कर कुटा जाता है। इसमे दाल कुटना आदि कार्य किया जाता था

सील लोढ़ा : सील लोढ़ा के चटनी गज़ब मिठाथे. अब इसकी की जगह कई मिक्सी जैसी मशीनों ने ले लिया है।

हल : हल एक कृषि यंत्र है जो जमीन की जुताई के काम आता है। इसकी सहायता से बीज बोने के पहले जमीन की आवश्यक तैयारी की जाती है। कृषि में प्रयुक्त औजारों में हल शायद सबसे प्राचीन है और जहाँ तक इतिहास की पहुँच है, हल किसी न किसी रूप में प्रचलित पाया गया है। हल से भूमि की उपरी सतह को उलट दिया जाता है जिससे नये पोषक तत्व उपर आ जाते हैं तथा खर-पतवार एवं फसलों की डंठल आदि जमीन में दब जाती है और धीरे-धीरे खाद में बदल जाते हैं। जुताई करने से जमीन में हवा का प्रवेश भी हो जाता है जिससे जमीन द्वारा पानी (नमी) बनाये रखने की शक्तबढ़ जाती है। अब यह यन्त्र भी खो गया है, इसकी जगह ट्रैकर ने ले लिया है।

बैल गाड़ी : यह यातायात का एक साधन है जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जाता है। इस साधन में बैल की सहायता से गाड़ी को चलाया जाता हैं।
बैल गाड़ी एक साधन मात्र नहीं, बैल गाड़ी जीवन की नीव है जिससे जीवन की नई सुरुवात हुई |बैल गाड़ी एक बहुत अच्छा सन्देश भी देती है जो जीवन के कर्मो को दरसाता है , जैसे जीवन के कर्म होंगे वैसे ही हमारे साथ साथ हमारे कर्म भी चलते है ठीक उसी तरह से जैसे सामने सामने चलते बैलो को पीछे पीछे गाड़ी के पहिये भी चलते है ,अर्थात कर्म साथ साथ चलते है | यह साधन हमारे ग्रामीण क्षेत्रो में प्रयोग लाया गया जो जिंदगी की सादगी का प्रतिक है यह एक सरल जीवन को बिना दुर्घटना के जीने का तरीका सिखाता है जिसमे प्रदुसान का खतरा नही होता ,| यह गरीबो की रेल गाड़ी है जो बिना पेट्रोल के ,बिना इलेक्ट्री के चलने वाला साधन है , यहाँ तक की यह बिना ड्रावर के भी अनयमित दुरी तक चलाया जा सकता है यह सरल यवम सुचारू साधन है |

लेकिन अब यह साधन लुप्त होता जा रहा है। अब तो ज़्यादातर गांवो मे बैलगाड़ी दिखाता ही नहीं है।

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