Culture And Heritage Gariaband

निवासरत् जातियाँ –

Culture And Heritage Gariaband आदिवासी बाहुल्य इस जिले में गोंड़, कंवर, तेली, कलार, कमार तथा भुंजिया जनजाति बहुतायत रूप से पाये जाते हैं। इनमें Gariaband से प्रमुख जनजातियों के बारे में निम्नानुसार जानकारी है:

गोंड़-गोंड जनजाति

Culture And Heritage Gariaband गोंड़-गोंड जनजाति पूरे जिले में पायी जाती है। यह अन्य जनजातियों से सबसे बड़ी जनजाति है। ऐसा माना जाता है कि यह जनजाति द्रविड़ वंश से संबन्धित है। वस्तुतः ’गुण्ड’ शब्द तेलगू के (कोड शब्द) से बना है। जिसका अर्थ पर्वत होता है। गोंड़ों की कुल 30 शाखाएं है। जिनमें प्रमुख रूप से अमात गोंड़ शामिल है। इसके सर्वाधिक प्रचलित गोत्र नेताम, मरकाम, कोमर्रा, कुंजाम, मंडावी, मांझी, टेकाम इत्यादि है।

गोंड़ जनजातियों का विवाह –

गोड़ जनजाति में भगेली-विवाह प्रथा में विवाह लड़के और लड़की रजामंदी से होता है। इस प्रथा में कन्या अपने प्रेमी के घर भाग कर आ जाती हैं और एक निश्चित सामाजिक रूझान के तहत यह विवाह संपन्न होता है। गोंड़ जनजाति में विवाह के अवसर पर अब लड़की वाले बारात लेकर लड़के वाले के घर आते है तब ऐसे विवाह को पठौनी-विवाह कहते है। चड़ विवाह- चड़ विवाह प्रथा में दुलहा बारात लेकर दुल्हन के घर जाता है।

लमसेना विवाह –

इस विवाह प्रथा में लड़के अपने ससुराल में आ कर रहने लगता है। यह जनजातियों में पाए जाने वाले सेवा विवाह का गोंड़ी रूप है। जनजातियों में प्रचलित अधिमान्य विवाह के अंतर्गत गोंड़ जनजाति में ममेरे, फुफेरे लड़के, लड़कियों के विवाह को दुध लौटावा कहते है। जनजाति में प्रचलित अपहरण विवाह को गोंड़ी जनजाति में ’पायसोतुर’ कहते हैं।

गोंड़ों की अर्थव्यवस्था –

इनके अर्थव्यवस्था कृषि व वनों पर आधारित है। कृषि इनके जीविका का प्रमुख साधन है। गोंड़ों की एक प्रजाति पहाड़ी मडि़या आज भी परिवर्तनीय कृषि करते है। जिसे स्थानीय बोली में धारिया या बेवार कृषि कहते है। गोंड़ जनजाति के प्रमुख देवता दुल्हादेव, बड़ादेव, नागदेव, नारायण देव है। गोंड़ प्रजाति मूलरूप से एक ईमानदार प्रजाति मानी जाती है। इसका सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन उन्नतशील एवं सभ्य है।

कमार जनजाति –

इस जनजाति में लड़कों का विवाह प्रायः 18-19 वर्ष की उम्र में तथा लड़कियों का विवाह 16-17 वर्ष की उम्र में करा दिया जाता है। मामा या बुआ के लड़का-लड़की से विवाह को प्राथमिकता देते है। विवाह प्रस्ताव वर पक्ष की ओर से होता है। विवाह तय होने पर वर पक्ष द्वारा वधु पक्ष को चावल, दाल व नगद कुछ रूपया “सूक” (वधु मूल्य) के रूप में दिये जाते है। सामान्य विवाह के अतिरिक्त घुरावट “लमसेना” (घर जमाई) प्रथा भी प्रचलित है। पैठू (घूसपैठ) उहरिया (सहपलायन) को सामाजिक दण्ड के बाद समाज स्वीकृति मिल जाती है। विधवा परित्यकता, पुर्नविवाह (चूड़ी पहनना) को मान्यता है। विधवा भाभी देवर के लिए चूड़ी पहन सकती है।

भुंजिया जनजाति –

भुंजिया जनजाति में पर्दा प्रथा का अभाव है, किंतु ससुर-बहु व जेठ-बहु सीधे बात न कर किसी प्रतीक या आड़ से बात करते है। बहुओं में छोटे भाई की पत्नि के रिश्ते को पवित्र माना जाता है तथा आम हिन्दुओं के लोक व्यवहार की तरह ही इस रिश्ते में स्पर्श का निषेध है। भुंजिया जनजाति द्वारा जादूटोना में विश्वास किया जाता है। गांव समाज में भलाई के लिए गांव का अत्यंत विशिष्ट व्यक्ति जादूटोना का ज्ञान रखता है, उसे कुछ भूतप्रेतों का मंत्र ज्ञान होता है, जिसे पढ़कर वह आई विपदा को दूर करता है। भुंजिया लोग कछुए को बहुत महत्व देते हैं, उसे ईश्वर का चरण पादुका मानते है। भुंजिया जनजाति के साथ अन्य वर्ग जाति के साथ बैठकर खान-पान निषेध रहता है। ऐसे मौंकों पर सामाजिक सम्बधों का निर्वाह हेतु पृथक से कच्ची रसोई भुंजिया द्वारा भुंजिया से अलग वर्ग जाति के लोगों को दी जाती है।

वेशभूषा एवं आभूषण –

कमार एवं भुंजिया जनजाति के पुरूष वर्ग के लोग परिधान/वस्त्र विन्यास के रूप में पंछा (छोटी धोती), सलूका एवं स्त्रियां – लुगरा, पोलखा आदि दैनिक उपयोग में पहनती है। किन्तु भुंजिया जनजाति के स्त्रीयां अभी कम वस्त्र धारण करते है। कमार एवं भुंजिया जनजाति के लोग नाक, कान, हाथ, कलाई, कमर एवं पैरों में सिंगार के रूप में निम्नानुसार नकली चांदी (गिलट) के आभूषणों का दैनिक उपयोग करते है।

वेशभूषा –

  • लुगरा और पोलका- महिलाओं का प्रमुख परिधान है। यह आम तौर पर सूती का बना होता है।
  • धोती और सदरी- पुरूषों का प्रमुख परिधान है।
  • गमछा – पुरूषों द्वारा गले में लगभग एक मीटर कपड़े डाला जाता है इसे ग्रामीण तौलिए के रूप में उपयोग करते हैं।
  • फूली- महिलाएं नाक में छेद कराकर सौंदर्य के लिए फुली पहनती हैं।
  • करधन- महिलाओं द्वारा इसे कमर में पहना जाता है।
  • बिछिया- विवाहित महिलाएं इसे पैरो के सौंदर्य के लिए पहनती हैं।
  • पैर पट्टी- महिलाओं द्वारा ऐडी में पहने जाना वाला आभूषण है।
  • बाजूबंध- युवतियां एवं महिलाएं इसे भुजा में पहनती हैं।

आभूषण – 

  • कान में – खिनवा, झुमका, बारी
  • नाक में – फुल्ली, नथनी
  • गला में – बंधा, सिक्के का माला, सूता
  • भुजा में – पहुंची (बाजूबंद)
  • कलाई में – ऐठी
  • हाथ की उंगलियों में – मुन्दरी (अंगूठी)
  • कमर में – करधन
  • पैर में – लच्छा, पैरपट्टी, चूड़ा, पैयजन
  • पैर की उंगलियों में – बिछियां, चूटका